मालव्य योग
मालव्य योग को वैदिक ज्योतिष के अनुसार किसी कुंडली में बनने वाले बहुत शुभ योगों में से एक माना जाता है तथा यह योग पंचमहापुरुष योग में से एक है। पंच महापुरुष योग में आने वाले शेष चार योग हंस योग, रूचक योग, भद्र योग एवम शश योग हैं। वैदिक ज्योतिष में मालव्य योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार शुक्र यदि किसी कुंडली में लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित हों अर्थात शुक्र यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में वृष, तुला अथवा मीन राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में मालव्य योग बनता है जिसका शुभ प्रभाव जातक को साहस, पराक्रम, शारीरिक बल, तर्क करने की क्षमता तथा समयानुसार उचित निर्णय लेने की क्षमता प्रदान कर सकता है। माल्वय योग के शुभ प्रबाव में आने वाले जातक सुंदर तथा आकर्षक होते हैं तथा इनमें दूसरे लोगों को विशेषतया विपरीत लिंग के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की प्रबल क्षमता होती है जिसके चलते ऐसे पुरुष जातक स्त्रियों को तथा स्त्री जातक पुरुषों को बहुत पसंद आते हैं। माल्वय योग के विशेष प्रभाव में आने वाले कुछ जातक अपनी सुंदरता तथा कलात्मकता के चलते सिनेमा जगत, माडलिंग आदि क्षेत्रों में भी सफलता प्राप्त करते हैं। माल्वय योग के प्रबल तथा विशेष प्रभाव में आने वालीं स्त्रियां बहुत सुंदर तथा आकर्षक होतीं हैं तथा ये किसी सौंदर्य प्रतियोगिता में जीत कर राष्ट्रीय अथवा अंतर राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कर सकतीं हैं।
मालव्य योग को वैदिक ज्योतिष के अनुसार किसी कुंडली में बनने वाले बहुत शुभ योगों में से एक माना जाता है तथा यह योग पंचमहापुरुष योग में से एक है। पंच महापुरुष योग में आने वाले शेष चार योग हंस योग, रूचक योग, भद्र योग एवम शश योग हैं। वैदिक ज्योतिष में मालव्य योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार शुक्र यदि किसी कुंडली में लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित हों अर्थात शुक्र यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में वृष, तुला अथवा मीन राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में मालव्य योग बनता है जिसका शुभ प्रभाव जातक को साहस, पराक्रम, शारीरिक बल, तर्क करने की क्षमता तथा समयानुसार उचित निर्णय लेने की क्षमता प्रदान कर सकता है। माल्वय योग के शुभ प्रबाव में आने वाले जातक सुंदर तथा आकर्षक होते हैं तथा इनमें दूसरे लोगों को विशेषतया विपरीत लिंग के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की प्रबल क्षमता होती है जिसके चलते ऐसे पुरुष जातक स्त्रियों को तथा स्त्री जातक पुरुषों को बहुत पसंद आते हैं। माल्वय योग के विशेष प्रभाव में आने वाले कुछ जातक अपनी सुंदरता तथा कलात्मकता के चलते सिनेमा जगत, माडलिंग आदि क्षेत्रों में भी सफलता प्राप्त करते हैं। माल्वय योग के प्रबल तथा विशेष प्रभाव में आने वालीं स्त्रियां बहुत सुंदर तथा आकर्षक होतीं हैं तथा ये किसी सौंदर्य प्रतियोगिता में जीत कर राष्ट्रीय अथवा अंतर राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कर सकतीं हैं।
मालव्य योग की प्रचलित परिभाषा
मालव्य योग की प्रचलित परिभाषा का यदि ध्यानपूर्वक अध्ययन करें तो यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि लगभग हर 12वीं कुंडली में मालव्य योग का निर्माण होता है। कुंडली में 12 घर तथा 12 राशियां होती हैं तथा इनमें से किसी भी एक घर में शुक्र के स्थित होने की संभावना 12 में से 1 रहेगी तथा इसी प्रकार 12 राशियों में से भी किसी एक राशि में शुक्र के स्थित होने की संभावना 12 में से एक ही रहेगी। इस प्रकार 12 राशियों तथा बारह घरों के संयोग से किसी कुंडली में शुक्र के किसी एक विशेष राशि में ही किसी एक विशेष घर में स्थित होने का संयोग 144 में से एक कुंडलियों में बनता है जैसे कि लगभग प्रत्येक 144वीं कुंडली में शुक्र पहले घर में मीन राशि में स्थित होते हैं। मालव्य योग के निर्माण पर ध्यान दें तो यह देख सकते हैं कि कुंडली के पहले घर में शुक्र तीन राशियों वृष, तुला तथा मीन में स्थित होने पर मालव्य योग बनाते हैं। इसी प्रकार शुक्र के किसी कुंडली के चौथे, सातवें अथवा दसवें घर में भी मालव्य योग का निर्माण करने की संभावना 144 में से 3 ही रहेगी तथा इन सभी संभावनाओं का योग 12 आता है जो कुल संभावनाओं अर्थात 144 का 12वां भाग है जिसका अर्थ यह हुआ कि मालव्य योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार लगभग हर 12वीं कुंडली में इस योग का निर्माण होता है।
मालव्य योग वैदिक ज्योतिष में वर्णित
मालव्य योग वैदिक ज्योतिष में वर्णित एक अति शुभ तथा दुर्लभ योग है तथा इसके द्वारा प्रदान किए जाने वाले शुभ फल प्रत्येक 12वें व्यक्ति में देखने को नहीं मिलते जिसके कारण यह कहा जा सकता है कि केवल शुक्र की कुंडली के किसी घर तथा किसी राशि विशेष के आधार पर ही इस योग के निर्माण का निर्णय नहीं किया जा सकता तथा किसी कुंडली में मालव्य योग के निर्माण के कुछ अन्य नियम भी होने चाहिएं। किसी भी अन्य शुभ योग के निर्माण के भांति ही मालव्य योग के निर्माण के लिए भी यह अति आवश्यक है कि कुंडली में शुक्र शुभ हों क्योंकि कुंडली में शुक्र के अशुभ होने से शुक्र के उपर बताए गए विशेष घरों तथा राशियों में स्थित होने पर भी मालव्य योग नहीं बनेगा अपितु इस स्थिति में शुक्र कुंडली में किसी गंभीर दोष का निर्माण कर सकते हैं। उदाहरण के लिए किसी कुंडली में अशुभ शुक्र यदि वृष, तुला अथवा मीन राशि में कुंडली के पहले घर में स्थित हो तो ऐसी कुंडली में माल्वय योग नहीं बनेगा अपितु इस कुंडली में अशुभ शुक्र दोष बना सकता है जिसके कारण जातक के चरित्र, व्यक्तित्व तथा व्यवसाय आदि पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है जिसके चलते इस दोष के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक भौतिक सुखों की चरम लालसा रखने वाले होते हैं तथा अपनी इन लालसाओं की पूर्ति के लिए ऐसे जातक किसी अवैध अथवा अनैतिक कार्य में सलंग्न हो सकते हैं जिसके कारण इन्हें समय समय पर मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है तथा समाज में अपयश भी मिल सकता है। इसी प्रकार कुंडली के उपर बताए गए अन्य घरों में स्थित अशुभ शुक्र भी मालव्य योग न बना कर कोई दोष बना सकता है जो अपनी स्थिति और बल के अनुसार जातक को अशुभ फल दे सकता है। इसलिए किसी कुंडली में मालव्य योग बनाने के लिए शुक्र का उस कुंडली में शुभ होना अति आवश्यक है।
कुंडली में शुक्र के शुभ होने के पश्चात
कुंडली में शुक्र के शुभ होने के पश्चात यह भी देखना चाहिए कि कुंडली में शुक्र को कौन से शुभ अथवा अशुभ ग्रह प्रभावित कर रहे हैं क्योंकि किसी कुंडली में शुभ शुक्र पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव शुक्र द्वारा बनाए जाने वाले मालव्य योग के शुभ फलों को कम कर सकता है तथा किसी कुंडली में शुभ शुक्र पर दो या दो से अधिक अशुभ ग्रहों का प्रबल प्रभाव कुंडली में बनने वाले मालव्य योग को प्रभावहीन भी बना सकता है। इसके विपरीत किसी कुंडली में शुभ शुक्र पर शुभ ग्रहों का प्रभाव कुंडली में बनने वाले मालव्य योग के शुभ फलों को और भी बढ़ा सकता है जिससे जातक को प्राप्त होने वाले शुभ फलों में बहुत वृद्धि हो जाएगी। इसके अतिरिक्त कुंडली में बनने वाले अन्य शुभ अशुभ योगों अथवा दोषों का भी भली भांति अध्ययन करना चाहिए क्योंकि कुंडली में बनने वाले पित्र दोष, मांगलिक दोष तथा काल सर्प दोष जैसे दोष माल्वय योग के प्रभाव को कम कर सकते हैं जबकि कुंडली में बनने वाले अन्य शुभ योग इस योग के प्रभाव को और अधिक बढ़ा सकते हैं। इसलिए किसी कुंडली में माल्वय योग के निर्माण तथा इसके शुभ फलों का निर्णय करने से पहले इस योग के निर्माण तथा फलादेश से संबंधित सभी नियमों का उचित रूप से अध्ययन कर लेना चाहिए। कुंडली के पहले घर में बनने वाला माल्वय योग जातक को सौंदर्य, व्यवसायिक सफलता तथा प्रसिद्धि जैसे शुभ फल प्रदान कर सकता है। कुंडली के चौथे घर में बनने वाला माल्वय योग जातक को संपत्ति, ऐश्वर्य, वैवाहिक सुख, वाहन, विलासपूर्ण घर तथा विदेशों में भ्रमण करने जैसे शुभ फल प्रदान कर सकता है। सातवें घर का माल्वय योग जातक को एक सुंदर तथा निष्ठावान पत्नि अथवा पति प्रदान कर सकता है तथा ऐसे जातक व्यवसाय के माध्यम, सिनेमा जगत, फैशन जगत अथवा सौंदर्य प्रतियोगिताओं के माध्यम से राष्ट्रीय अथवा अंतर राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कर सकते हैं। दसवें घर का माल्वय योग जातक को उसके व्यवसायिक क्षेत्र में बहुत अच्छे परिणाम दे सकता है तथा इस योग के प्रभाव में आने वाले जातक व्यापार, सिनेमा, होटल व्यवसाय, एयरलांइस सेवा आदि जैसे व्यवसायों के माध्यम से बहुत धन तथा ख्याति अर्जित कर सकते हैं।
मालव्य योग-एक विश्लेषण
ज्योतिष के प्रसिद्घ ग्रंथ फलदीपिका के योगाध्याय में निम्न श्लोक में पंच महापुरूष योगों का वर्णन किया गया है:-
रूचकभद्रकहंसक मालवा:
सशशका इति पंच च कीर्तिता:।
स्वभवनोच्चागतेषु चतुष्टये
क्षितिसुतादिषु तान् क्रमशौ वदेत।
अर्थात् पंच महापुरूष योग रूचक, भद्र, हंस, मालव्य और शश हैं जो क्रमश: मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि के जन्मपत्रिका में, केन्द्र में स्वराशि अथवा उच्चा राशि में स्थित होने पर बनते हैं। प्रस्तुत लेख में हम मालव्य योग का विस्तृत विवेचन करेंगे। मंत्रेश्वर जी के अनुसार-
रूचकभद्रकहंसक मालवा:
सशशका इति पंच च कीर्तिता:।
स्वभवनोच्चागतेषु चतुष्टये
क्षितिसुतादिषु तान् क्रमशौ वदेत।
अर्थात् पंच महापुरूष योग रूचक, भद्र, हंस, मालव्य और शश हैं जो क्रमश: मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि के जन्मपत्रिका में, केन्द्र में स्वराशि अथवा उच्चा राशि में स्थित होने पर बनते हैं। प्रस्तुत लेख में हम मालव्य योग का विस्तृत विवेचन करेंगे। मंत्रेश्वर जी के अनुसार-
पुष्टाङगे धृतिमान्धनी सुतवधू भाग्यान्वितो वर्धनो
मालव्ये सुखभुवसुवाहनयशा विद्वान्प्रसन्नेद्रिय:।
अर्थात् मालव्य योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति आकर्षक, कांतिमान, पुष्ट शरीर वाला, धैर्यवान, विद्वान, प्रसन्नचित्त रहने वाला, सदैव वृद्धि को प्राप्त करने वाला, विवेकशील बुद्धि का धनी होता है। उसको समस्त ऎश्वर्य, धन-संपत्ति, संतान सुख आदि सहज ही प्राप्त हो जाते हैं। वह सौभाग्यशाली होता है, उसे भौतिक सुख आसानी से प्राप्त हो जाते हैं। वाहनों का पर्याप्त सुख तथा उसकी कीर्ति और प्रसिद्धि सर्वत्र फैलती है। वह जन्मजात विद्वान होता है, सुबोध मति वाला और सुखों को आजीवन भोगने वाला होता है।
मालव्ये सुखभुवसुवाहनयशा विद्वान्प्रसन्नेद्रिय:।
अर्थात् मालव्य योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति आकर्षक, कांतिमान, पुष्ट शरीर वाला, धैर्यवान, विद्वान, प्रसन्नचित्त रहने वाला, सदैव वृद्धि को प्राप्त करने वाला, विवेकशील बुद्धि का धनी होता है। उसको समस्त ऎश्वर्य, धन-संपत्ति, संतान सुख आदि सहज ही प्राप्त हो जाते हैं। वह सौभाग्यशाली होता है, उसे भौतिक सुख आसानी से प्राप्त हो जाते हैं। वाहनों का पर्याप्त सुख तथा उसकी कीर्ति और प्रसिद्धि सर्वत्र फैलती है। वह जन्मजात विद्वान होता है, सुबोध मति वाला और सुखों को आजीवन भोगने वाला होता है।
ज्योतिष ग्रंथ बृहत् पाराशर होरा शास्त्र के अनुसार पंच महापुरूष योगाध्याय के अन्तर्गत निम्न तीन श्लोक जन्मपत्रिका में स्थित मालव्य महापुरूष योग के गुणावगुणों की व्याख्या देते हैं:-
समौष्ठ: कृशमध्यश्च चन्द्रकान्तिरूचि: पुमान्।
सुगन्धौ नातिरक्ताङ्गो न ह्वस्वो नातिदीर्घक।
समस्वच्छरदो हस्तिनाद आजानुबाहुधृक्।
मुखंविश्वाङग्लु दैर्ये विस्तारे दशाङग्लुम्।
मालवो मालवाख्यं च देशं पाति ससिन्धुकम्।
सुखं सप्तति वर्षान्तं भुक्त्वा याति सुरालयम्।
अर्थात् मालव्य योग में जन्मा व्यक्ति आकर्षक होंठ वाला, चन्द्र के समान कांति वाला, गौरवर्ण, मध्यम कद, धवल एवं स्वच्छ दंतावलियुक्त, हस्तिगर्जनायुक्त, लंबी भुजाएँ, दीर्घायु एवं भौतिक-सांसारिक सुखों को भोगते हुए जीवन व्यतीत करता है।
शुक्रदेव के प्रिय विषयों में कवि, काव्य, गान, गीत-संगीत, अभिनय कला, ललित कला, रहस्य, गूढ़, कल्पनाप्रवणता, उच्चा कोटि का दर्शन, लेखन, अध्यापन, सभ्यता और सुसंस्कृति, नम्रता और मृदुभाषिता आदि हैं। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि शुक्रदेव इन समस्त गुणों के महानायक हैं। जब शुक्रदेव किसी व्यक्ति की कुंडली में मालव्य योग का निर्माण करते हैं तो ऎसा व्यक्ति निश्चित रूप से ही इन कलाओं में से किसी कला विशेष का मर्मज्ञ, पंडित, निपुण होकर महान प्रतिष्ठा एवं यश अर्जित कर समाज में अपने लिए एक विशिष्ट स्थान बना लेता है और महापुरूषों की श्रेणी में गिना जाने लगता है।
समौष्ठ: कृशमध्यश्च चन्द्रकान्तिरूचि: पुमान्।
सुगन्धौ नातिरक्ताङ्गो न ह्वस्वो नातिदीर्घक।
समस्वच्छरदो हस्तिनाद आजानुबाहुधृक्।
मुखंविश्वाङग्लु दैर्ये विस्तारे दशाङग्लुम्।
मालवो मालवाख्यं च देशं पाति ससिन्धुकम्।
सुखं सप्तति वर्षान्तं भुक्त्वा याति सुरालयम्।
अर्थात् मालव्य योग में जन्मा व्यक्ति आकर्षक होंठ वाला, चन्द्र के समान कांति वाला, गौरवर्ण, मध्यम कद, धवल एवं स्वच्छ दंतावलियुक्त, हस्तिगर्जनायुक्त, लंबी भुजाएँ, दीर्घायु एवं भौतिक-सांसारिक सुखों को भोगते हुए जीवन व्यतीत करता है।
शुक्रदेव के प्रिय विषयों में कवि, काव्य, गान, गीत-संगीत, अभिनय कला, ललित कला, रहस्य, गूढ़, कल्पनाप्रवणता, उच्चा कोटि का दर्शन, लेखन, अध्यापन, सभ्यता और सुसंस्कृति, नम्रता और मृदुभाषिता आदि हैं। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि शुक्रदेव इन समस्त गुणों के महानायक हैं। जब शुक्रदेव किसी व्यक्ति की कुंडली में मालव्य योग का निर्माण करते हैं तो ऎसा व्यक्ति निश्चित रूप से ही इन कलाओं में से किसी कला विशेष का मर्मज्ञ, पंडित, निपुण होकर महान प्रतिष्ठा एवं यश अर्जित कर समाज में अपने लिए एक विशिष्ट स्थान बना लेता है और महापुरूषों की श्रेणी में गिना जाने लगता है।
यदि हम मालव्य योग के धारक व्यक्ति की कुंडलियों का विश्लेषण करें तो स्वत: अनुमान लगा पायेंगे कि मालव्य योग व्यक्ति को किस सीमा तक ऊँचाई देता है। यद्यपि जन्मपत्रिका में केवल मात्र मालव्य योग ही श्रेष्ठता नहीं देता अपितु अन्य ग्रह स्थिति भी देखी जानी चाहिये परंतु फिर भी इस योग में उत्पन्न व्यक्ति में शुक्र के विषयों के प्रति एक महान आकर्षण रहता है और वह इन्हीं विषयों में से किसी एक में शुक्र का आशीर्वाद पाकर स्थापित हो जाता है। महापुरूष योग व्यक्ति के चरित्र का निर्धारण करते हुए क्षेत्र विशेष में श्रेष्ठतर, पद-प्रतिष्ठा प्राप्त कराता है। मालव्य योग में जन्मा व्यक्ति अति आधुनिक पद्धतियों का अनुसरण करते हुए संगीत, प्राचीन विद्याएं, प्रेम काव्य, प्रेम गीत, अभिनय आदि के क्षेत्रों में पारंगत होकर प्रसिद्ध हो जाता है। अब कुछ महापुरूषों की कुण्डलियों में इस मालव्य योग के प्रभाव को देखते हैं।
(1)टी.एस.इलियट। इलियट के बारे में यह प्रसिद्घ है कि जो उन्हें समझ गया, वह अंग्रेजी साहित्य को समझ गया। उनकी जन्मपत्रिका में तुला राशि में, लग्न में, स्वगृही शुक्र, बुध से युत होकर मालव्य योग बना रहे हैं। यहाँ "एक और एक ग्यारह" होना भी चरितार्थ हो रहा है। एक ओर जहाँ शुक्र तुला राशि में स्थित होकर महापुरूष योग बना रहे हैं तो दूसरी ओर बुद्घिमान एवं तार्किक बुध का साथ भी मिल जाने से उन्होंने अपनी वाणी को मूर्त रूप में और गहराई से अभिव्यक्त किया। मानवीय भावनाओं को अंतर्मन तक छू लेना ही इलियट की विशेषता रही है। संभवत: यही कारण रहा कि शुक्र की रहस्यमयी एवं भाव प्रवणता का सानिध्य पाकर इलियट द्वारा परम रहस्यवादी साहित्य का सृजन हुआ। उनका काव्य दुर्बोध एवं दुरूह तो है ही पर रहस्यों से भी भरा है।
(2)अंग्रेजी साहित्य में सुंदरता की अभिव्यक्ति का पर्याय माने जाने वाले जॉन कीट्स अंग्रेजी काव्य के नवरसों के सिरमौर कहे जाते हैं। जिन्होंने श्रृंगार रस से ओत-प्रोत महान रचनाओं को जन्म दिया। यह सब मालव्य योग के कारण ही संभव हुआ कि उनके जन्म लग्न में शुक्र, तुला राशि में स्थित होकर नीच के सूर्य से युत हैं। यद्यपि शुक्र नीच राशि स्थित सूर्य से युत हैं परंतु तब भी उनकी कामाग्नि को, मालव्य योग ने महान साहित्य की सर्जना की ओर मो़डकर, श्रृंगार प्रधान साहित्य में परिवर्तित कर दिया और काव्य की अनुपम एवं अद्वितीय रचनाओं को जन्म देने में सफल रहे कीट्स। अल्पायु में ही महान साहित्य का सृजन मालव्य योग ने उच्चा के चंद्र ने अष्टम भाव (शोध सृजन) में स्थित होकर, द्वितीय भाव (वाणी) पर दृष्टि डालकर करवाया है और वे महान पुरूष बन गये।
यदि हम शुक्र के मालव्य योग का विश्लेषण उनकी विनम्रता, सभ्यता, सुसंस्कृति, कमनीय कांति एवं आकर्षक व्यक्तित्व एवं शुक्र की महानता के प्रसंग में करें तो हमारी दृष्टि अनायास ही हमारे देश की एक नेता सोनिया गाँधी की जन्मपत्रिका पर जाती है। उनकी जन्मपत्रिका में तुला राशि में स्थित होकर शुक्र, चतुर्थ भाव अर्थात् जन समर्थन के भाव में देवगुरू बृहस्पति के साथ बैठे हैं और मालव्य योग का सृजन कर रहे हैं।
यदि हम शुक्र के मालव्य योग का विश्लेषण उनकी विनम्रता, सभ्यता, सुसंस्कृति, कमनीय कांति एवं आकर्षक व्यक्तित्व एवं शुक्र की महानता के प्रसंग में करें तो हमारी दृष्टि अनायास ही हमारे देश की एक नेता सोनिया गाँधी की जन्मपत्रिका पर जाती है। उनकी जन्मपत्रिका में तुला राशि में स्थित होकर शुक्र, चतुर्थ भाव अर्थात् जन समर्थन के भाव में देवगुरू बृहस्पति के साथ बैठे हैं और मालव्य योग का सृजन कर रहे हैं।
(3)हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी सोनिया गाँधी जी के व्यक्तित्व में कमनीयता,नम्रता, शालीनता, सहजता, लोकप्रियता एवं शुक्र जैसी महानता के गुणों की झलक उनके दैनंदिन व्यवहार में मिलती रहती है। शुक्र एवं बृहस्पति दोनों गुरूओं के चतुर्थ भाव में स्थित होने से, उनमें शुक्र जैसी सीखने की क्षमता देखने को मिलती है। हिन्दी भाषा से पूर्णतया अनभिज्ञ होने पर भी उन्होंने उसे सीखकर भारतीय जनमानस में अपनी एक जगह बनाई। यद्यपि देश की जनता का पूर्ण समर्थन भी उन्हें प्राप्त था कि वे प्रधानमंत्री बनें परन्तु उन्हौंने प्रधानमंत्री जैसा पद भी अस्वीकार कर दिया किंतु इस योग के प्रभाव में पद नहीं होते हुए भी नियंत्रक की भूमिका निभा रही हैं।
(4)शुक्र की कलात्मकता के लिए हमें संसार के महान चित्रकार लियो नार्दो दा विन्सी के जन्म चक्र को पढ़ना होगा। उनकी कुंडली में शुक्र देव सप्तम भाव में वृष राशि में स्थित होकर मालव्य योग की रचना कर रहे हैं। सप्तम भाव कलत्र या काम का भी भाव है परंतु दशम से दशम अर्थात् सप्तम भाव भी आजीविका का है। यहाँ स्थित शुक्र ने विंसी की काम भावना को कला में परिणत कर दिया और कला को पराकाष्ठा पर पहुँचाया, जिससे इस महान चित्रकार द्वारा चित्रकला के अनुपम, अद्वितीय और शाश्वत चित्रों की रचना की गई। उनकी मोनालिसा और दी लास्ट सपर जैसी महान चित्रकृतियाँ आज भी विश्व में प्रसिद्ध हैं।
मालव्य योग का एक और रूप देखें जो शुक्र के अभिनय, नृत्य, गान, निर्देशन जैसे गुणों का प्रकटीकरण करता है। यह कुंडली अभिनेता राजकपूर की है, जो भारतीय सिने जगत के एक महान कलाकार थे... मालव्य योग न केवल कला एवं सौंदर्य के महान पारखी अपितु शुक्र की भाव प्रवणता एवं संवेदनशीलता इस कलाकार में कूट-कूटकर भरी हुई थी। जिन्होंने अभिनय को नई और शाश्वत ऊँचाईयाँ दी। एक और उन्होंने विषय प्रधान फिल्मों का निर्माण किया तो दूसरी ओर उनके अभिनय में व्यक्ति के दिल को छू जाने वाली भावनाएं भी थीं। वे कला प्रवीण तो थे ही, साथ ही उसी कला के पारखी बनकर उन्होंने उत्तम निर्देशन की मिसाल भी कायम की जो आज भी फिल्म उद्योग में जानी जाती है। वे सिने जगत में लंबे समय तक छाए रहे। उनकी कुंडली में तुला राशि में, चतुर्थ भाव में स्थित होकर मालव्य योग की रचना कर रहे हैं साथ ही शनि से युत भी हैं जो मालव्य योग की महानता के कारण कला के साथ न्याय करने में भी पूर्णतया सफल रहे। शुक्रदेव के मालव्य योग की प्रशंसा और गुणानुवाद जितने किए जाएं कम होगें यदि मैं यूं कहूँ कि बाढ़हिं कथा, पार नहीं पावहिं, तो उचित ही होगा।मालव्य योग
मालव्य योग को वैदिक ज्योतिष के अनुसार किसी कुंडली में बनने वाले बहुत शुभ योगों में से एक माना जाता है तथा यह योग पंचमहापुरुष योग में से एक है। पंच महापुरुष योग में आने वाले शेष चार योग हंस योग, रूचक योग, भद्र योग एवम शश योग हैं। वैदिक ज्योतिष में मालव्य योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार शुक्र यदि किसी कुंडली में लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित हों अर्थात शुक्र यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में वृष, तुला अथवा मीन राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में मालव्य योग बनता है जिसका शुभ प्रभाव जातक को साहस, पराक्रम, शारीरिक बल, तर्क करने की क्षमता तथा समयानुसार उचित निर्णय लेने की क्षमता प्रदान कर सकता है। माल्वय योग के शुभ प्रबाव में आने वाले जातक सुंदर तथा आकर्षक होते हैं तथा इनमें दूसरे लोगों को विशेषतया विपरीत लिंग के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की प्रबल क्षमता होती है जिसके चलते ऐसे पुरुष जातक स्त्रियों को तथा स्त्री जातक पुरुषों को बहुत पसंद आते हैं। माल्वय योग के विशेष प्रभाव में आने वाले कुछ जातक अपनी सुंदरता तथा कलात्मकता के चलते सिनेमा जगत, माडलिंग आदि क्षेत्रों में भी सफलता प्राप्त करते हैं। माल्वय योग के प्रबल तथा विशेष प्रभाव में आने वालीं स्त्रियां बहुत सुंदर तथा आकर्षक होतीं हैं तथा ये किसी सौंदर्य प्रतियोगिता में जीत कर राष्ट्रीय अथवा अंतर राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कर सकतीं हैं।
मालव्य योग का एक और रूप देखें जो शुक्र के अभिनय, नृत्य, गान, निर्देशन जैसे गुणों का प्रकटीकरण करता है। यह कुंडली अभिनेता राजकपूर की है, जो भारतीय सिने जगत के एक महान कलाकार थे... मालव्य योग न केवल कला एवं सौंदर्य के महान पारखी अपितु शुक्र की भाव प्रवणता एवं संवेदनशीलता इस कलाकार में कूट-कूटकर भरी हुई थी। जिन्होंने अभिनय को नई और शाश्वत ऊँचाईयाँ दी। एक और उन्होंने विषय प्रधान फिल्मों का निर्माण किया तो दूसरी ओर उनके अभिनय में व्यक्ति के दिल को छू जाने वाली भावनाएं भी थीं। वे कला प्रवीण तो थे ही, साथ ही उसी कला के पारखी बनकर उन्होंने उत्तम निर्देशन की मिसाल भी कायम की जो आज भी फिल्म उद्योग में जानी जाती है। वे सिने जगत में लंबे समय तक छाए रहे। उनकी कुंडली में तुला राशि में, चतुर्थ भाव में स्थित होकर मालव्य योग की रचना कर रहे हैं साथ ही शनि से युत भी हैं जो मालव्य योग की महानता के कारण कला के साथ न्याय करने में भी पूर्णतया सफल रहे। शुक्रदेव के मालव्य योग की प्रशंसा और गुणानुवाद जितने किए जाएं कम होगें यदि मैं यूं कहूँ कि बाढ़हिं कथा, पार नहीं पावहिं, तो उचित ही होगा।मालव्य योग
मालव्य योग को वैदिक ज्योतिष के अनुसार किसी कुंडली में बनने वाले बहुत शुभ योगों में से एक माना जाता है तथा यह योग पंचमहापुरुष योग में से एक है। पंच महापुरुष योग में आने वाले शेष चार योग हंस योग, रूचक योग, भद्र योग एवम शश योग हैं। वैदिक ज्योतिष में मालव्य योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार शुक्र यदि किसी कुंडली में लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित हों अर्थात शुक्र यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में वृष, तुला अथवा मीन राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में मालव्य योग बनता है जिसका शुभ प्रभाव जातक को साहस, पराक्रम, शारीरिक बल, तर्क करने की क्षमता तथा समयानुसार उचित निर्णय लेने की क्षमता प्रदान कर सकता है। माल्वय योग के शुभ प्रबाव में आने वाले जातक सुंदर तथा आकर्षक होते हैं तथा इनमें दूसरे लोगों को विशेषतया विपरीत लिंग के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की प्रबल क्षमता होती है जिसके चलते ऐसे पुरुष जातक स्त्रियों को तथा स्त्री जातक पुरुषों को बहुत पसंद आते हैं। माल्वय योग के विशेष प्रभाव में आने वाले कुछ जातक अपनी सुंदरता तथा कलात्मकता के चलते सिनेमा जगत, माडलिंग आदि क्षेत्रों में भी सफलता प्राप्त करते हैं। माल्वय योग के प्रबल तथा विशेष प्रभाव में आने वालीं स्त्रियां बहुत सुंदर तथा आकर्षक होतीं हैं तथा ये किसी सौंदर्य प्रतियोगिता में जीत कर राष्ट्रीय अथवा अंतर राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कर सकतीं हैं।
मालव्य योग की प्रचलित परिभाषा
मालव्य योग की प्रचलित परिभाषा का यदि ध्यानपूर्वक अध्ययन करें तो यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि लगभग हर 12वीं कुंडली में मालव्य योग का निर्माण होता है। कुंडली में 12 घर तथा 12 राशियां होती हैं तथा इनमें से किसी भी एक घर में शुक्र के स्थित होने की संभावना 12 में से 1 रहेगी तथा इसी प्रकार 12 राशियों में से भी किसी एक राशि में शुक्र के स्थित होने की संभावना 12 में से एक ही रहेगी। इस प्रकार 12 राशियों तथा बारह घरों के संयोग से किसी कुंडली में शुक्र के किसी एक विशेष राशि में ही किसी एक विशेष घर में स्थित होने का संयोग 144 में से एक कुंडलियों में बनता है जैसे कि लगभग प्रत्येक 144वीं कुंडली में शुक्र पहले घर में मीन राशि में स्थित होते हैं। मालव्य योग के निर्माण पर ध्यान दें तो यह देख सकते हैं कि कुंडली के पहले घर में शुक्र तीन राशियों वृष, तुला तथा मीन में स्थित होने पर मालव्य योग बनाते हैं। इसी प्रकार शुक्र के किसी कुंडली के चौथे, सातवें अथवा दसवें घर में भी मालव्य योग का निर्माण करने की संभावना 144 में से 3 ही रहेगी तथा इन सभी संभावनाओं का योग 12 आता है जो कुल संभावनाओं अर्थात 144 का 12वां भाग है जिसका अर्थ यह हुआ कि मालव्य योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार लगभग हर 12वीं कुंडली में इस योग का निर्माण होता है।
मालव्य योग वैदिक ज्योतिष में वर्णित
मालव्य योग वैदिक ज्योतिष में वर्णित एक अति शुभ तथा दुर्लभ योग है तथा इसके द्वारा प्रदान किए जाने वाले शुभ फल प्रत्येक 12वें व्यक्ति में देखने को नहीं मिलते जिसके कारण यह कहा जा सकता है कि केवल शुक्र की कुंडली के किसी घर तथा किसी राशि विशेष के आधार पर ही इस योग के निर्माण का निर्णय नहीं किया जा सकता तथा किसी कुंडली में मालव्य योग के निर्माण के कुछ अन्य नियम भी होने चाहिएं। किसी भी अन्य शुभ योग के निर्माण के भांति ही मालव्य योग के निर्माण के लिए भी यह अति आवश्यक है कि कुंडली में शुक्र शुभ हों क्योंकि कुंडली में शुक्र के अशुभ होने से शुक्र के उपर बताए गए विशेष घरों तथा राशियों में स्थित होने पर भी मालव्य योग नहीं बनेगा अपितु इस स्थिति में शुक्र कुंडली में किसी गंभीर दोष का निर्माण कर सकते हैं। उदाहरण के लिए किसी कुंडली में अशुभ शुक्र यदि वृष, तुला अथवा मीन राशि में कुंडली के पहले घर में स्थित हो तो ऐसी कुंडली में माल्वय योग नहीं बनेगा अपितु इस कुंडली में अशुभ शुक्र दोष बना सकता है जिसके कारण जातक के चरित्र, व्यक्तित्व तथा व्यवसाय आदि पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है जिसके चलते इस दोष के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक भौतिक सुखों की चरम लालसा रखने वाले होते हैं तथा अपनी इन लालसाओं की पूर्ति के लिए ऐसे जातक किसी अवैध अथवा अनैतिक कार्य में सलंग्न हो सकते हैं जिसके कारण इन्हें समय समय पर मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है तथा समाज में अपयश भी मिल सकता है। इसी प्रकार कुंडली के उपर बताए गए अन्य घरों में स्थित अशुभ शुक्र भी मालव्य योग न बना कर कोई दोष बना सकता है जो अपनी स्थिति और बल के अनुसार जातक को अशुभ फल दे सकता है। इसलिए किसी कुंडली में मालव्य योग बनाने के लिए शुक्र का उस कुंडली में शुभ होना अति आवश्यक है।
कुंडली में शुक्र के शुभ होने के पश्चात
कुंडली में शुक्र के शुभ होने के पश्चात यह भी देखना चाहिए कि कुंडली में शुक्र को कौन से शुभ अथवा अशुभ ग्रह प्रभावित कर रहे हैं क्योंकि किसी कुंडली में शुभ शुक्र पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव शुक्र द्वारा बनाए जाने वाले मालव्य योग के शुभ फलों को कम कर सकता है तथा किसी कुंडली में शुभ शुक्र पर दो या दो से अधिक अशुभ ग्रहों का प्रबल प्रभाव कुंडली में बनने वाले मालव्य योग को प्रभावहीन भी बना सकता है। इसके विपरीत किसी कुंडली में शुभ शुक्र पर शुभ ग्रहों का प्रभाव कुंडली में बनने वाले मालव्य योग के शुभ फलों को और भी बढ़ा सकता है जिससे जातक को प्राप्त होने वाले शुभ फलों में बहुत वृद्धि हो जाएगी। इसके अतिरिक्त कुंडली में बनने वाले अन्य शुभ अशुभ योगों अथवा दोषों का भी भली भांति अध्ययन करना चाहिए क्योंकि कुंडली में बनने वाले पित्र दोष, मांगलिक दोष तथा काल सर्प दोष जैसे दोष माल्वय योग के प्रभाव को कम कर सकते हैं जबकि कुंडली में बनने वाले अन्य शुभ योग इस योग के प्रभाव को और अधिक बढ़ा सकते हैं। इसलिए किसी कुंडली में माल्वय योग के निर्माण तथा इसके शुभ फलों का निर्णय करने से पहले इस योग के निर्माण तथा फलादेश से संबंधित सभी नियमों का उचित रूप से अध्ययन कर लेना चाहिए। कुंडली के पहले घर में बनने वाला माल्वय योग जातक को सौंदर्य, व्यवसायिक सफलता तथा प्रसिद्धि जैसे शुभ फल प्रदान कर सकता है। कुंडली के चौथे घर में बनने वाला माल्वय योग जातक को संपत्ति, ऐश्वर्य, वैवाहिक सुख, वाहन, विलासपूर्ण घर तथा विदेशों में भ्रमण करने जैसे शुभ फल प्रदान कर सकता है। सातवें घर का माल्वय योग जातक को एक सुंदर तथा निष्ठावान पत्नि अथवा पति प्रदान कर सकता है तथा ऐसे जातक व्यवसाय के माध्यम, सिनेमा जगत, फैशन जगत अथवा सौंदर्य प्रतियोगिताओं के माध्यम से राष्ट्रीय अथवा अंतर राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कर सकते हैं। दसवें घर का माल्वय योग जातक को उसके व्यवसायिक क्षेत्र में बहुत अच्छे परिणाम दे सकता है तथा इस योग के प्रभाव में आने वाले जातक व्यापार, सिनेमा, होटल व्यवसाय, एयरलांइस सेवा आदि जैसे व्यवसायों के माध्यम से बहुत धन तथा ख्याति अर्जित कर सकते हैं।
मालव्य योग-एक विश्लेषण
ज्योतिष के प्रसिद्घ ग्रंथ फलदीपिका के योगाध्याय में निम्न श्लोक में पंच महापुरूष योगों का वर्णन किया गया है:-
रूचकभद्रकहंसक मालवा:
सशशका इति पंच च कीर्तिता:।
स्वभवनोच्चागतेषु चतुष्टये
क्षितिसुतादिषु तान् क्रमशौ वदेत।
अर्थात् पंच महापुरूष योग रूचक, भद्र, हंस, मालव्य और शश हैं जो क्रमश: मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि के जन्मपत्रिका में, केन्द्र में स्वराशि अथवा उच्चा राशि में स्थित होने पर बनते हैं। प्रस्तुत लेख में हम मालव्य योग का विस्तृत विवेचन करेंगे। मंत्रेश्वर जी के अनुसार-
रूचकभद्रकहंसक मालवा:
सशशका इति पंच च कीर्तिता:।
स्वभवनोच्चागतेषु चतुष्टये
क्षितिसुतादिषु तान् क्रमशौ वदेत।
अर्थात् पंच महापुरूष योग रूचक, भद्र, हंस, मालव्य और शश हैं जो क्रमश: मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि के जन्मपत्रिका में, केन्द्र में स्वराशि अथवा उच्चा राशि में स्थित होने पर बनते हैं। प्रस्तुत लेख में हम मालव्य योग का विस्तृत विवेचन करेंगे। मंत्रेश्वर जी के अनुसार-
पुष्टाङगे धृतिमान्धनी सुतवधू भाग्यान्वितो वर्धनो
मालव्ये सुखभुवसुवाहनयशा विद्वान्प्रसन्नेद्रिय:।
अर्थात् मालव्य योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति आकर्षक, कांतिमान, पुष्ट शरीर वाला, धैर्यवान, विद्वान, प्रसन्नचित्त रहने वाला, सदैव वृद्धि को प्राप्त करने वाला, विवेकशील बुद्धि का धनी होता है। उसको समस्त ऎश्वर्य, धन-संपत्ति, संतान सुख आदि सहज ही प्राप्त हो जाते हैं। वह सौभाग्यशाली होता है, उसे भौतिक सुख आसानी से प्राप्त हो जाते हैं। वाहनों का पर्याप्त सुख तथा उसकी कीर्ति और प्रसिद्धि सर्वत्र फैलती है। वह जन्मजात विद्वान होता है, सुबोध मति वाला और सुखों को आजीवन भोगने वाला होता है।
मालव्ये सुखभुवसुवाहनयशा विद्वान्प्रसन्नेद्रिय:।
अर्थात् मालव्य योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति आकर्षक, कांतिमान, पुष्ट शरीर वाला, धैर्यवान, विद्वान, प्रसन्नचित्त रहने वाला, सदैव वृद्धि को प्राप्त करने वाला, विवेकशील बुद्धि का धनी होता है। उसको समस्त ऎश्वर्य, धन-संपत्ति, संतान सुख आदि सहज ही प्राप्त हो जाते हैं। वह सौभाग्यशाली होता है, उसे भौतिक सुख आसानी से प्राप्त हो जाते हैं। वाहनों का पर्याप्त सुख तथा उसकी कीर्ति और प्रसिद्धि सर्वत्र फैलती है। वह जन्मजात विद्वान होता है, सुबोध मति वाला और सुखों को आजीवन भोगने वाला होता है।
ज्योतिष ग्रंथ बृहत् पाराशर होरा शास्त्र के अनुसार पंच महापुरूष योगाध्याय के अन्तर्गत निम्न तीन श्लोक जन्मपत्रिका में स्थित मालव्य महापुरूष योग के गुणावगुणों की व्याख्या देते हैं:-
समौष्ठ: कृशमध्यश्च चन्द्रकान्तिरूचि: पुमान्।
सुगन्धौ नातिरक्ताङ्गो न ह्वस्वो नातिदीर्घक।
समस्वच्छरदो हस्तिनाद आजानुबाहुधृक्।
मुखंविश्वाङग्लु दैर्ये विस्तारे दशाङग्लुम्।
मालवो मालवाख्यं च देशं पाति ससिन्धुकम्।
सुखं सप्तति वर्षान्तं भुक्त्वा याति सुरालयम्।
अर्थात् मालव्य योग में जन्मा व्यक्ति आकर्षक होंठ वाला, चन्द्र के समान कांति वाला, गौरवर्ण, मध्यम कद, धवल एवं स्वच्छ दंतावलियुक्त, हस्तिगर्जनायुक्त, लंबी भुजाएँ, दीर्घायु एवं भौतिक-सांसारिक सुखों को भोगते हुए जीवन व्यतीत करता है।
शुक्रदेव के प्रिय विषयों में कवि, काव्य, गान, गीत-संगीत, अभिनय कला, ललित कला, रहस्य, गूढ़, कल्पनाप्रवणता, उच्चा कोटि का दर्शन, लेखन, अध्यापन, सभ्यता और सुसंस्कृति, नम्रता और मृदुभाषिता आदि हैं। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि शुक्रदेव इन समस्त गुणों के महानायक हैं। जब शुक्रदेव किसी व्यक्ति की कुंडली में मालव्य योग का निर्माण करते हैं तो ऎसा व्यक्ति निश्चित रूप से ही इन कलाओं में से किसी कला विशेष का मर्मज्ञ, पंडित, निपुण होकर महान प्रतिष्ठा एवं यश अर्जित कर समाज में अपने लिए एक विशिष्ट स्थान बना लेता है और महापुरूषों की श्रेणी में गिना जाने लगता है।
समौष्ठ: कृशमध्यश्च चन्द्रकान्तिरूचि: पुमान्।
सुगन्धौ नातिरक्ताङ्गो न ह्वस्वो नातिदीर्घक।
समस्वच्छरदो हस्तिनाद आजानुबाहुधृक्।
मुखंविश्वाङग्लु दैर्ये विस्तारे दशाङग्लुम्।
मालवो मालवाख्यं च देशं पाति ससिन्धुकम्।
सुखं सप्तति वर्षान्तं भुक्त्वा याति सुरालयम्।
अर्थात् मालव्य योग में जन्मा व्यक्ति आकर्षक होंठ वाला, चन्द्र के समान कांति वाला, गौरवर्ण, मध्यम कद, धवल एवं स्वच्छ दंतावलियुक्त, हस्तिगर्जनायुक्त, लंबी भुजाएँ, दीर्घायु एवं भौतिक-सांसारिक सुखों को भोगते हुए जीवन व्यतीत करता है।
शुक्रदेव के प्रिय विषयों में कवि, काव्य, गान, गीत-संगीत, अभिनय कला, ललित कला, रहस्य, गूढ़, कल्पनाप्रवणता, उच्चा कोटि का दर्शन, लेखन, अध्यापन, सभ्यता और सुसंस्कृति, नम्रता और मृदुभाषिता आदि हैं। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि शुक्रदेव इन समस्त गुणों के महानायक हैं। जब शुक्रदेव किसी व्यक्ति की कुंडली में मालव्य योग का निर्माण करते हैं तो ऎसा व्यक्ति निश्चित रूप से ही इन कलाओं में से किसी कला विशेष का मर्मज्ञ, पंडित, निपुण होकर महान प्रतिष्ठा एवं यश अर्जित कर समाज में अपने लिए एक विशिष्ट स्थान बना लेता है और महापुरूषों की श्रेणी में गिना जाने लगता है।
यदि हम मालव्य योग के धारक व्यक्ति की कुंडलियों का विश्लेषण करें तो स्वत: अनुमान लगा पायेंगे कि मालव्य योग व्यक्ति को किस सीमा तक ऊँचाई देता है। यद्यपि जन्मपत्रिका में केवल मात्र मालव्य योग ही श्रेष्ठता नहीं देता अपितु अन्य ग्रह स्थिति भी देखी जानी चाहिये परंतु फिर भी इस योग में उत्पन्न व्यक्ति में शुक्र के विषयों के प्रति एक महान आकर्षण रहता है और वह इन्हीं विषयों में से किसी एक में शुक्र का आशीर्वाद पाकर स्थापित हो जाता है। महापुरूष योग व्यक्ति के चरित्र का निर्धारण करते हुए क्षेत्र विशेष में श्रेष्ठतर, पद-प्रतिष्ठा प्राप्त कराता है। मालव्य योग में जन्मा व्यक्ति अति आधुनिक पद्धतियों का अनुसरण करते हुए संगीत, प्राचीन विद्याएं, प्रेम काव्य, प्रेम गीत, अभिनय आदि के क्षेत्रों में पारंगत होकर प्रसिद्ध हो जाता है। अब कुछ महापुरूषों की कुण्डलियों में इस मालव्य योग के प्रभाव को देखते हैं।
(1)टी.एस.इलियट। इलियट के बारे में यह प्रसिद्घ है कि जो उन्हें समझ गया, वह अंग्रेजी साहित्य को समझ गया। उनकी जन्मपत्रिका में तुला राशि में, लग्न में, स्वगृही शुक्र, बुध से युत होकर मालव्य योग बना रहे हैं। यहाँ "एक और एक ग्यारह" होना भी चरितार्थ हो रहा है। एक ओर जहाँ शुक्र तुला राशि में स्थित होकर महापुरूष योग बना रहे हैं तो दूसरी ओर बुद्घिमान एवं तार्किक बुध का साथ भी मिल जाने से उन्होंने अपनी वाणी को मूर्त रूप में और गहराई से अभिव्यक्त किया। मानवीय भावनाओं को अंतर्मन तक छू लेना ही इलियट की विशेषता रही है। संभवत: यही कारण रहा कि शुक्र की रहस्यमयी एवं भाव प्रवणता का सानिध्य पाकर इलियट द्वारा परम रहस्यवादी साहित्य का सृजन हुआ। उनका काव्य दुर्बोध एवं दुरूह तो है ही पर रहस्यों से भी भरा है।
(2)अंग्रेजी साहित्य में सुंदरता की अभिव्यक्ति का पर्याय माने जाने वाले जॉन कीट्स अंग्रेजी काव्य के नवरसों के सिरमौर कहे जाते हैं। जिन्होंने श्रृंगार रस से ओत-प्रोत महान रचनाओं को जन्म दिया। यह सब मालव्य योग के कारण ही संभव हुआ कि उनके जन्म लग्न में शुक्र, तुला राशि में स्थित होकर नीच के सूर्य से युत हैं। यद्यपि शुक्र नीच राशि स्थित सूर्य से युत हैं परंतु तब भी उनकी कामाग्नि को, मालव्य योग ने महान साहित्य की सर्जना की ओर मो़डकर, श्रृंगार प्रधान साहित्य में परिवर्तित कर दिया और काव्य की अनुपम एवं अद्वितीय रचनाओं को जन्म देने में सफल रहे कीट्स। अल्पायु में ही महान साहित्य का सृजन मालव्य योग ने उच्चा के चंद्र ने अष्टम भाव (शोध सृजन) में स्थित होकर, द्वितीय भाव (वाणी) पर दृष्टि डालकर करवाया है और वे महान पुरूष बन गये।
यदि हम शुक्र के मालव्य योग का विश्लेषण उनकी विनम्रता, सभ्यता, सुसंस्कृति, कमनीय कांति एवं आकर्षक व्यक्तित्व एवं शुक्र की महानता के प्रसंग में करें तो हमारी दृष्टि अनायास ही हमारे देश की एक नेता सोनिया गाँधी की जन्मपत्रिका पर जाती है। उनकी जन्मपत्रिका में तुला राशि में स्थित होकर शुक्र, चतुर्थ भाव अर्थात् जन समर्थन के भाव में देवगुरू बृहस्पति के साथ बैठे हैं और मालव्य योग का सृजन कर रहे हैं।
यदि हम शुक्र के मालव्य योग का विश्लेषण उनकी विनम्रता, सभ्यता, सुसंस्कृति, कमनीय कांति एवं आकर्षक व्यक्तित्व एवं शुक्र की महानता के प्रसंग में करें तो हमारी दृष्टि अनायास ही हमारे देश की एक नेता सोनिया गाँधी की जन्मपत्रिका पर जाती है। उनकी जन्मपत्रिका में तुला राशि में स्थित होकर शुक्र, चतुर्थ भाव अर्थात् जन समर्थन के भाव में देवगुरू बृहस्पति के साथ बैठे हैं और मालव्य योग का सृजन कर रहे हैं।
(3)हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी सोनिया गाँधी जी के व्यक्तित्व में कमनीयता,नम्रता, शालीनता, सहजता, लोकप्रियता एवं शुक्र जैसी महानता के गुणों की झलक उनके दैनंदिन व्यवहार में मिलती रहती है। शुक्र एवं बृहस्पति दोनों गुरूओं के चतुर्थ भाव में स्थित होने से, उनमें शुक्र जैसी सीखने की क्षमता देखने को मिलती है। हिन्दी भाषा से पूर्णतया अनभिज्ञ होने पर भी उन्होंने उसे सीखकर भारतीय जनमानस में अपनी एक जगह बनाई। यद्यपि देश की जनता का पूर्ण समर्थन भी उन्हें प्राप्त था कि वे प्रधानमंत्री बनें परन्तु उन्हौंने प्रधानमंत्री जैसा पद भी अस्वीकार कर दिया किंतु इस योग के प्रभाव में पद नहीं होते हुए भी नियंत्रक की भूमिका निभा रही हैं।
(4)शुक्र की कलात्मकता के लिए हमें संसार के महान चित्रकार लियो नार्दो दा विन्सी के जन्म चक्र को पढ़ना होगा। उनकी कुंडली में शुक्र देव सप्तम भाव में वृष राशि में स्थित होकर मालव्य योग की रचना कर रहे हैं। सप्तम भाव कलत्र या काम का भी भाव है परंतु दशम से दशम अर्थात् सप्तम भाव भी आजीविका का है। यहाँ स्थित शुक्र ने विंसी की काम भावना को कला में परिणत कर दिया और कला को पराकाष्ठा पर पहुँचाया, जिससे इस महान चित्रकार द्वारा चित्रकला के अनुपम, अद्वितीय और शाश्वत चित्रों की रचना की गई। उनकी मोनालिसा और दी लास्ट सपर जैसी महान चित्रकृतियाँ आज भी विश्व में प्रसिद्ध हैं।
मालव्य योग का एक और रूप देखें जो शुक्र के अभिनय, नृत्य, गान, निर्देशन जैसे गुणों का प्रकटीकरण करता है। यह कुंडली अभिनेता राजकपूर की है, जो भारतीय सिने जगत के एक महान कलाकार थे... मालव्य योग न केवल कला एवं सौंदर्य के महान पारखी अपितु शुक्र की भाव प्रवणता एवं संवेदनशीलता इस कलाकार में कूट-कूटकर भरी हुई थी। जिन्होंने अभिनय को नई और शाश्वत ऊँचाईयाँ दी। एक और उन्होंने विषय प्रधान फिल्मों का निर्माण किया तो दूसरी ओर उनके अभिनय में व्यक्ति के दिल को छू जाने वाली भावनाएं भी थीं। वे कला प्रवीण तो थे ही, साथ ही उसी कला के पारखी बनकर उन्होंने उत्तम निर्देशन की मिसाल भी कायम की जो आज भी फिल्म उद्योग में जानी जाती है। वे सिने जगत में लंबे समय तक छाए रहे। उनकी कुंडली में तुला राशि में, चतुर्थ भाव में स्थित होकर मालव्य योग की रचना कर रहे हैं साथ ही शनि से युत भी हैं जो मालव्य योग की महानता के कारण कला के साथ न्याय करने में भी पूर्णतया सफल रहे। शुक्रदेव के मालव्य योग की प्रशंसा और गुणानुवाद जितने किए जाएं कम होगें यदि मैं यूं कहूँ कि बाढ़हिं कथा, पार नहीं पावहिं, तो उचित ही होगा।
मालव्य योग का एक और रूप देखें जो शुक्र के अभिनय, नृत्य, गान, निर्देशन जैसे गुणों का प्रकटीकरण करता है। यह कुंडली अभिनेता राजकपूर की है, जो भारतीय सिने जगत के एक महान कलाकार थे... मालव्य योग न केवल कला एवं सौंदर्य के महान पारखी अपितु शुक्र की भाव प्रवणता एवं संवेदनशीलता इस कलाकार में कूट-कूटकर भरी हुई थी। जिन्होंने अभिनय को नई और शाश्वत ऊँचाईयाँ दी। एक और उन्होंने विषय प्रधान फिल्मों का निर्माण किया तो दूसरी ओर उनके अभिनय में व्यक्ति के दिल को छू जाने वाली भावनाएं भी थीं। वे कला प्रवीण तो थे ही, साथ ही उसी कला के पारखी बनकर उन्होंने उत्तम निर्देशन की मिसाल भी कायम की जो आज भी फिल्म उद्योग में जानी जाती है। वे सिने जगत में लंबे समय तक छाए रहे। उनकी कुंडली में तुला राशि में, चतुर्थ भाव में स्थित होकर मालव्य योग की रचना कर रहे हैं साथ ही शनि से युत भी हैं जो मालव्य योग की महानता के कारण कला के साथ न्याय करने में भी पूर्णतया सफल रहे। शुक्रदेव के मालव्य योग की प्रशंसा और गुणानुवाद जितने किए जाएं कम होगें यदि मैं यूं कहूँ कि बाढ़हिं कथा, पार नहीं पावहिं, तो उचित ही होगा।
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