रु | शुक्र | शुक्र | 26.08.2017 |
गुरु | शुक्र | सूर्य | 04.02.2018 |
गुरु | शुक्र | चंद् | 25.03.2018 |
गुरु | शुक्र | मंगल | 14.06.2018 |
गुरु | शुक्र | राहु | 10.08.2018 |
गुरु | शुक्र | गुरु | 03.01.2019 |
गुरु | शुक्र | शनि | 13.05.2019 |
गुरु | शुक्र | बुध | 14.10.2019 |
गुरु | शुक्र | केतु | 29.02.2020 |
गुरु | सूर्य | सूर्य | 26.04.2020 |
गुरु | सूर्य | चंद् | 11.05.2020 |
गुरु | सूर्य | मंगल | 04.06.2020 |
गुरु | सूर्य | राहु | 21.06.2020 |
गुरु | सूर्य | गुरु | 04.08.2020 |
गुरु | सूर्य | शनि | 12.09.2020 |
गुरु | सूर्य | बुध | 28.10.2020 |
गुरु | सूर्य | केतु | 08.12.2020 |
गुरु | सूर्य | शुक्र | 25.12.2020 |
गुरु | चंद् | चंद् | 12.02.2021 |
गुरु | चंद् | मंगल | 25.03.2021 |
गुरु | चंद् | राहु | 22.04.2021 |
गुरु | चंद् | गुरु | 04.07.2021 |
गुरु | चंद् | शनि | 07.09.2021 |
जानिये कुंडली में गुरु की 12 भाव मे प्रभाव
जिस जातक के लग्न में बृहस्पति स्थित होता है, वह जातक दिव्य देह से युक्त, आभूषणधारी, बुद्धिमान, लंबे शरीर वाला होता है।. ऐसा व्यक्ति धनवान, प्रतिष्ठावान तथा राजदरबार में मान-सम्मान पाने वाला होता है।. शरीर कांति के समान, गुणवान, गौर वर्ण, सुंदर वाणी से युक्त,सतोगुणी एवं कफ प्रकृति वाला होता है।दीर्घायु, सत्कर्मी, पुत्रवान एवं सुखी बनाता है लग्न का बृहस्पति।.
जिस जातक के लग्न में बृहस्पति स्थित होता है, वह जातक दिव्य देह से युक्त, आभूषणधारी, बुद्धिमान, लंबे शरीर वाला होता है।. ऐसा व्यक्ति धनवान, प्रतिष्ठावान तथा राजदरबार में मान-सम्मान पाने वाला होता है।. शरीर कांति के समान, गुणवान, गौर वर्ण, सुंदर वाणी से युक्त,सतोगुणी एवं कफ प्रकृति वाला होता है।दीर्घायु, सत्कर्मी, पुत्रवान एवं सुखी बनाता है लग्न का बृहस्पति।.
जिस जातक के द्वितीय भाव में बृहस्पति होता है, उसकी बुद्धि, उसकी स्वाभाविक रुचि काव्य-शास्त्र की ओर होती है।. द्वितीय भाव वाणी का भी होता इस कारण जातक वाचाल होता है।. उसमें अहम की मात्रा बढ़ जाती है।. क्योंकि द्वितीय भाव कुटुंब, वाणी एवं धन का होता है और बृहस्पति इस भाव का कारक भी है, इस कारण द्वितीय भाव स्थित बृहस्पति, कारक भावों नाश्यति के सूत्र के अनुसार, इस भाव के शुभ फलों में कमी ही करता देखा गया है।. धनार्जन के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना,वाणी की प्रगल्भता, अथवा बहुत कम बोलना और परिवार में संतुलन बनाये रखने हेतु उसे प्रयास करने पड़ते हैं।. राजदरबार में उसे दंड देने का अधिकारी होता है। अन्य लोग इसका मान-सम्मान करते हैं।. ऐसा जातक शत्रुरहित होता है।. आयुर्भाव पर पूर्ण दृष्टि होने के कारण वह दीर्घायु और विध्वान होता है।. पाप ग्रह से युक्त होने पर शिक्षा में रुकावटें आती हैं तथा वहमिथ्याभाषी हो जाता है।. दूषित गुरु से शुभ फलों मेंकमी आती है और घर के बड़ों से विरोध कराता है।.
जिस जातक के तृतीय भाव में बृहस्पति होता है, वह मित्रों के प्रति कृतघ्न और सहोदरों का कल्याण करने वाला होता है।. वराहमिहिर के अनुसार वह कृपण होता है।. इसी कारण धनवान हो कर भी वह निर्धन के समान परिलक्षित होता है।. परंतु शुभ ग्रहों से युक्त होने पर उसे शुभ फल प्राप्त होते हैं।. पुरुष राशि में होने पर शिक्षा अपूर्ण रहती है, परंतु विधवान प्रतीत होता है।. इस स्थान में स्थित गुरु के जातक के लिए सर्वोत्तम व्यवसाय अध्यापक का होता है।. शिक्षक प्रत्येक स्थिति में गंभीर एवं शांत बने रहते हैं तथा परिस्थितियों का कुशलतापूर्वक सामना करते हैं।.
जिस जातक के चतुर्थ स्थान में बलवान बृहस्पति होता है, वह देवताओं और ब्राह्मणों से प्रीति रखता है, राजा से सुख प्राप्त करता है, सुखी, यशस्वी, बली, धन-वाहनादि से युक्त होता है और पिता को सुखी बनाता है।. वह सुहृदय एवं मेधावी होता है। इस भाव में अकेला गुरू पूर्वजों से संपत्ति प्राप्त करता है।.
जिस जातक के पंचम स्थान में बृहस्पति होता है, वह बुद्धिमान, गुणवान, तर्कशील, श्रेष्ठ एवं विद्वानों द्वारा पूजित होता है।. धनु एवं मीन राशि में होने से उसकी कम संतति होती है।. कर्क में वह संतति रहित भी देखा गया है।. सभा में तर्कानुकूल उचित बोलने वाला, शुद्धचित तथा विनम्र होता है।.
जिस जातक के पंचम स्थान में बृहस्पति होता है, वह बुद्धिमान, गुणवान, तर्कशील, श्रेष्ठ एवं विद्वानों द्वारा पूजित होता है।. धनु एवं मीन राशि में होने से उसकी कम संतति होती है।. कर्क में वह संतति रहित भी देखा गया है।. सभा में तर्कानुकूल उचित बोलने वाला, शुद्धचित तथा विनम्र होता है।.
पंचमस्थ गुरु के कारण संतान सुख कम होता है।. संतान कम होती है और उससे सुख भी कम ही मिलता है।.
रिपु स्थान, अर्थात जन्म लग्न से छठे स्थान में बृहस्पति होने पर जातक शत्रुनाशक, युद्धजया होता है एवं मामा से विरोध करता है।. स्वयं, माता एवं मामा के स्वास्थ्य में कमी रहती है।. संगीत विधा में अभिरुचि होती है।. पाप ग्रहों की राशि में होने से शत्रुओं से पीड़ित भी रहता है।. गुरु – चंद्र का योग इस स्थान पर दोष उत्पन्न करता है।. यदि गुरु शनि के घर राहु के साथ स्थित हो, तो रोगों का प्रकोप बना रहता है।. इस भाव का गुरु वैध, डाक्टर और अधिवक्ताओं हेतु अशुभ है।. इस भाव के गुरु के जातक के बारे में लोग संदिग्ध और संशयात्मा रहते हैं।. पुरुष राशि में गुरु होने पर जुआ, शराब और वेश्या से प्रेम होता है।. इन्हें मधुमेह, बहुमूत्रता, हर्निया आदि रोग हो सकते हैं।. धनेश होने पर पैतृक संपत्ति से वंचित रहना पड़ सकता है।.
जिस जातक के जन्म लग्न से सप्तम भाव में बृहस्पति हो, तो ऐसा जातक, बुद्धिमान, सर्वगुणसंपन्न, अधिक स्त्रियों में आसक्त रहने वाला, धनी, सभा में भाषण देने में कुशल, संतोषी, धैर्यवान, विनम्र और अपने पिता से अधिक और उच्च पद को प्राप्त करने वाला होता है।. इसकी पत्नी पतिव्रता होती है।. मेष, सिंह, मिथुन एवं धनु में गुरु हो, तो शिक्षा के लिए श्रेष्ठ है, जिस कारण ऐसा व्यक्ति विधवान, बुद्धिमान, शिक्षक, प्राध्यापक और न्यायाधीश हो सकता है।.
जिस व्यक्ति के अष्टम भाव में बृहस्पति होता है, वह पिता के घर में अधिक समय तक नहीं रहता।. वह कृशकाय और दीर्घायु होता है।. द्वितीय भाव पर पूर्ण दृष्टि होने के कारण धनी होता है।. वह कुटुंब से स्नेह रखता है।. उसकी वाणी संयमित होती है।. यदि शत्रु राशि में गुरु हो, तो जातक शत्रुओं से घिरा हुआ, विवेकहीन, सेवक, निम्न कार्यों में लिप्त रहने वाला और आलसी होता है।. स्वग्रही एवं शुभ राशि में होने पर जातक ज्ञानपूर्वक किसी उत्तम स्थान पर मृत्यु को प्राप्त करता है।. वह सुखी होता है।. बाह्य संबंधों से लाभान्वित होता है। स्त्री राशि में होने के कारण अशुभ फल और पुरुष राशि में होने से शुभ फल प्राप्त होते हैं।.
जिस जातक के नवम स्थान में बृहस्पति हो, उसका घर चार मंजिल का होता है।. धर्म में उसकी आस्था सदैव बनी रहती है।. उसपर राजकृपा बनी रहती है, अर्थात जहां भी नौकरी करेगा, स्वामी की कृपा दृष्टि उसपर बनी रहेगी।. वह उसका स्नेह पात्र होगा।. बृहस्पति उसका धर्म पिता होगा।. सहोदरों के प्रति वह समर्पित रहेगा और ऐश्वर्यशाली होगा।. उसका भाग्यवान होना अवश्यंभावी है और वह विद्वान, पुत्रवान,सर्वशास्त्रज्ञ, राजमंत्री एवं विद्वानों का आदर करने वाला होगा।.
जिस जातक के दसवें भाव में बृहस्पति हो, उसके घर पर देव ध्वजा फहराती रहती है।. उसका प्रताप अपने पिता-दादा से कहीं अधिक होता है।. उसको संतान सुख अल्प होता है।. वह धनी और यशस्वी, उत्तम आचरण वाला और राजा का प्रिय होता है।. इसे मित्रों का, स्त्री का, कुटुंब का धन और वाहन का पूर्ण सुख प्राप्त होता है।. दशम में रवि हो, तो पिता से, चंद्र हो, तो माता से, बुध हो, तो मित्र से, मंगल हो, तो शत्रु से, गुरु हो, तो भाई से, शुक्र हो, तो स्त्री से एवं शनि हो, तो सेवकों से उसे धन प्राप्त होता है।.
जिस जातक के एकादश भाव में बृहस्पति हो, उसकी धनवान एवं विधवान भी सभा में स्तृति करते हैं।. वह सोना-चांदी आदि अमूल्य पदार्थों का स्वामी होता है।. वह विधवान, निरोगी, चंचल, सुंदर एवं निज स्त्री प्रेमी होता है।. परंतु कारक भावों नाश्यति, के कारण इस भाव के गुरु के फल सामान्य ही दृष्टिगोचर होते हैं, अर्थात इनके शुभत्व में कमी आती है।.
जिस जातक के द्वादश भाव में बृहस्पति हो, तो उसका द्रव्य अच्छे कार्यों में व्यय होने के पश्चात् भी, अभिमानी होने के कारण, उसे यश प्राप्त नहीं होता है।. निर्धन ,भाग्यहीन, अल्प संतति वाला और दूसरों को किस प्रकार से ठगा जाए, सदैव ऐसी चिंताओं में वह लिप्त रहता है।. वह रोगी होता है और अपने कर्मों के द्वारा शत्रु अधिक पैदा कर लेता है।. उसके अनुसार यज्ञ आदि कर्म व्यर्थ और निरर्थक हैं।. आयु का मध्य तथा उत्तरार्द्ध अच्छे होते है।. इस प्रकार यह अनुभव में आता है कि गुरु कितना ही शुभ ग्रह हो, लेकिन यदि अशुभ स्थिति में है, तो उसके फलों में शुभत्व की कमी हो जाती है और अशुभ फल भी प्राप्त होते हैं और शुभ स्थिति में होने पर गुरु कल्याणकारी होता है।.
बृहस्पति का राशि फल
(गुरु कुंडली में किस राशि में क्या फल देता है)
मेष में – गुरु हो तो जातक तर्क वितर्क करने वाला ,किसी से न दबने वाला ,सात्विक,धनी,कार्य
क्षेत्र में विख्यात,क्षमाशील ,पुत्रवान,बलवान
,प्तिभाशाली,तेजस्वी, शत्रु वाला,बहु
व्ययी ,दंडनायक व तीक्ष्ण स्वभाव का
होता है |
क्षेत्र में विख्यात,क्षमाशील ,पुत्रवान,बलवान
,प्तिभाशाली,तेजस्वी, शत्रु वाला,बहु
व्ययी ,दंडनायक व तीक्ष्ण स्वभाव का
होता है |
वृष में गुरु हो तो जातक वस्त्र अलंकार प्रेमी ,विशाल
देह वाला ,देव –ब्राह्मण –गौ भक्त, प्रचारक
,सौभाग्यशाली,अपनी स्त्री में
ही आसक्त ,सुन्दर कृषि व गौ धन युक्त, वैद्यक
क्रिया में कुशल ,मनोहर वाणी-बुद्धि व गुणों से युक्त,विनम्र तथा नीतिकुशल होता है
देह वाला ,देव –ब्राह्मण –गौ भक्त, प्रचारक
,सौभाग्यशाली,अपनी स्त्री में
ही आसक्त ,सुन्दर कृषि व गौ धन युक्त, वैद्यक
क्रिया में कुशल ,मनोहर वाणी-बुद्धि व गुणों से युक्त,विनम्र तथा नीतिकुशल होता है
मिथुन में गुरु हो तो जातक ,विज्ञान विशारद ,बुद्धिमान,सुनय
नी,सरल,निपुण, ,मान्य ,गुरुजनों व बंधुओं से सत्कृत होता है |
कर्क में गुरु हो तो जातक विद्वान,सुरूप देह युक्त ,ज्ञानवान धार्मिक, सत्य स्वभाव वाला,यशस्वी ,अन्न संग्रही ,कोषाध्यक्ष,स्थिर पुत्र वाला,संसार में पूज्य विशिष्ट कर्मा तथा मित्रों में आसक्त होता है |
नी,सरल,निपुण, ,मान्य ,गुरुजनों व बंधुओं से सत्कृत होता है |
कर्क में गुरु हो तो जातक विद्वान,सुरूप देह युक्त ,ज्ञानवान धार्मिक, सत्य स्वभाव वाला,यशस्वी ,अन्न संग्रही ,कोषाध्यक्ष,स्थिर पुत्र वाला,संसार में पूज्य विशिष्ट कर्मा तथा मित्रों में आसक्त होता है |
सिंह में गुरु हो तो जातक स्थिर शत्रुता वाला ,धीर विद्वान,शिष्ट परिजनों से युक्त,राजा या उसके तुल्य,पुरुषार्थी स्वभाव में लक्ष्य ,क्रोध से समस्त शत्रुओं को
जीतने वाला ,सुदृढ़ शरीर का ,वन-पर्वत
आदि के भ्रमण में रूचि रखने वाला होता है |
जीतने वाला ,सुदृढ़ शरीर का ,वन-पर्वत
आदि के भ्रमण में रूचि रखने वाला होता है |
कन्या में गुरु हो तो जातक मेधावी, धार्मिक ,कार्यकुशल गंध –पुष्प-वस्त्र प्रेमी ,कार्यों में स्थिर, शास्त्रज्ञान व शिल्प कार्य से धनी दानी सुशील चतुर ,अनेक भाषाओं का ज्ञाता तथा धनी होता है |
तुला मे गुरु हो तो जातक मेधावी ,पुत्रवान,विदेश भ्रमण
से धनी विनीत ,आभूषण प्रिय ,नृत्य व
नाटक से धन संग्रह करने वाला ,सुन्दर ,अपने सह व्यापारियों में
बड़ा,पंडित,देव अतिथि का पूजन करने वाला होता है |
से धनी विनीत ,आभूषण प्रिय ,नृत्य व
नाटक से धन संग्रह करने वाला ,सुन्दर ,अपने सह व्यापारियों में
बड़ा,पंडित,देव अतिथि का पूजन करने वाला होता है |
वृश्चिक में गुरु हो तो जातक अधिक शास्त्रों में चतुर ,क्षमाशील, नृपति, ग्रंथों का भाष्य करने वाला ,निपुण,देव मंदिर व नगर में कार्य करने वाला , सद्स्त्रीवान,अल्प पुत्र वाला ,रोग से पीड़ित अधिक श्रम करने वाला ,क्रोधी, धर्म में पाखण्ड करने वाला व निंद्य आचरण वाला होता है |
धनु में गुरु हो तो जातक आचार्य ,स्थिर धनी ,दाता ,
मित्रों का शुभ करने वाला ,परोपकारी ,शास्त्र में तत्पर
,मंत्री या सचिव ,अनेक देशों का भ्रमण करने वाला तथा
तीर्थ सेवन में रूचि रखने वाला होता है |
मित्रों का शुभ करने वाला ,परोपकारी ,शास्त्र में तत्पर
,मंत्री या सचिव ,अनेक देशों का भ्रमण करने वाला तथा
तीर्थ सेवन में रूचि रखने वाला होता है |
मकर में गुरु हो तो जातक अल्प बलि ,अधिक मेहनत करने वाला
,क्लेश धारक,नीच आचरण करने वाला ,मूर्ख ,निर्धन ,
दूसरों की नौकरी करने वाला , दया –धर्म –
प्रेम –पवित्रता –स्व बन्धु व मंगल से रहित ,दुर्बल देह वाला
,डरपोक,प्रवासी,व विषाद युक्त होता है |
,क्लेश धारक,नीच आचरण करने वाला ,मूर्ख ,निर्धन ,
दूसरों की नौकरी करने वाला , दया –धर्म –
प्रेम –पवित्रता –स्व बन्धु व मंगल से रहित ,दुर्बल देह वाला
,डरपोक,प्रवासी,व विषाद युक्त होता है |
कुम्भ में गुरु हो तो जातक चुगलखोर ,असाधु ,निंद्य कार्यों में तत्पर
,नीच जन सेवी
,पापी,लोभी ,रोगी ,अपने वचनों
के दोष से अपने धन का नाशक ,बुद्धिहीन व गुरु
की स्त्री में आसक्त होता है |
,नीच जन सेवी
,पापी,लोभी ,रोगी ,अपने वचनों
के दोष से अपने धन का नाशक ,बुद्धिहीन व गुरु
की स्त्री में आसक्त होता है |
मीन में गुरु हो तो जातक वेदार्थ शास्त्र वेत्ता ,मित्र व
सज्जनों द्वारा पूजनीय ,राज मंत्री ,प्रशंसा
प्राप्त करने वाला ,धनी ,निडर ,गर्वीला,
स्थिर कार्यारम्भ करने वाला ,शांतिप्रिय ,विख्यात ,नीति व
व्यवहार को जानने वाला होता है |
(गुरु पर किसी अन्य ग्रह कि युति या दृष्टि के प्रभाव
से उपरोक्त राशि फल में परिवर्तन भी संभव है|कुंडली में है गुरुचाण्डाल योग तो उत्पन्न होती हैं ये समस्याएं- बचने के लिए करें ये उपाय -
सज्जनों द्वारा पूजनीय ,राज मंत्री ,प्रशंसा
प्राप्त करने वाला ,धनी ,निडर ,गर्वीला,
स्थिर कार्यारम्भ करने वाला ,शांतिप्रिय ,विख्यात ,नीति व
व्यवहार को जानने वाला होता है |
(गुरु पर किसी अन्य ग्रह कि युति या दृष्टि के प्रभाव
से उपरोक्त राशि फल में परिवर्तन भी संभव है|कुंडली में है गुरुचाण्डाल योग तो उत्पन्न होती हैं ये समस्याएं- बचने के लिए करें ये उपाय -
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